देवशयनी एकादशी और चातुर्मास 2025: तिथि, नियम, महत्व और व्रत कथा

Devshayani ekadashi
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तिथि: 6 जुलाई 2025, रविवार | पारण: 7 जुलाई 2025, प्रातः 5:29 से 8:16 बजे तक

देवशयनी एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है। इसे ‘हरिशयनी एकादशी’, ‘आषाढ़ी एकादशी’ या ‘पद्मा एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से भगवान श्रीविष्णु क्षीर सागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीनों तक ब्रह्मांडीय विश्राम करते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जो धार्मिक अनुशासन और तपस्या का विशेष काल होता है।

तिथि एवं व्रत मुहूर्त

  • एकादशी तिथि आरंभ: 5 जुलाई 2025, शाम 6:58 बजे
  • तिथि समाप्त: 6 जुलाई 2025, रात 9:14 बजे
  • व्रत तिथि: 6 जुलाई 2025 (उदया तिथि अनुसार)
  • व्रत पारण: 7 जुलाई 2025, प्रातः 5:29 से 8:16 बजे तक

धार्मिक महत्व

देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का आरंभ होता है, जो चार पवित्र महीनों का काल होता है – आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन। इस काल में भगवान विष्णु विश्राम में रहते हैं, इसलिए मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि वर्जित माने जाते हैं। यह समय आत्मशुद्धि, भक्ति, व्रत और तप का माना गया है।

क्या करें (चातुर्मास में)

  • प्रातः स्नान के बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  • तुलसी, दीप, पीले पुष्प और चंदन से भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • भोजन में सात्विकता रखें – प्याज, लहसुन, मांस, शराब आदि से दूर रहें।
  • व्रत करें और फलाहार या एक समय भोजन अपनाएं।
  • दान करें – अन्न, वस्त्र, दीप, छाता, जल पात्र आदि।
  • भूमि पर सोने का नियम अपनाएं, मृदु शय्या से बचें।

क्या न करें

  • विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, नया व्यापार आदि शुरू न करें।
  • क्रोध, कटु वाणी और झूठ से बचें।
  • काले और नीले वस्त्र न पहनें, इनकी जगह पीला, हरा, सफेद रंग अपनाएं।
  • तामसिक भोजन और रात्रि में भोजन त्याज्य माना गया है।
  • तुलसी पर एकादशी को जल न चढ़ाएं।

देवशयनी एकादशी व्रत कथा

सतयुग के समय राजा मांधाता का राज्य बहुत ही समृद्ध और धार्मिक था। वे धर्मनिष्ठ, सत्यप्रिय और प्रजा पालक राजा थे। एक बार उनके राज्य में तीन वर्षों तक लगातार वर्षा नहीं हुई, जिससे भयंकर अकाल पड़ गया। जनता भूख-प्यास और कष्ट से पीड़ित हो गई।

राजा ने अनेक यज्ञ, हवन और दान किए लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। तब वे मार्गदर्शन के लिए महान ऋषि अंगिरा के आश्रम पहुंचे। ऋषि ने बताया कि उनके राज्य में एक शूद्र अनुचित रूप से तपस्या कर रहा है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा है। जब राजा ने उसे दंडित करने से इनकार किया, तो ऋषि ने एक उपाय बताया – आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत करना।

ऋषि ने बताया कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं और यदि यह व्रत विधिपूर्वक किया जाए तो वर्षा अवश्य होगी। राजा ने पूरे राज्य में व्रत रखने का आदेश दिया। सभी लोगों ने श्रद्धा से व्रत रखा, भगवान का पूजन किया और कथा सुनी।

व्रत के पारण के दिन आकाश में बादल उमड़ने लगे और अचानक जोरदार वर्षा होने लगी। वर्षा से धरती हरी-भरी हो गई, अकाल समाप्त हुआ और जनता में हर्ष की लहर दौड़ गई।

तब से यह व्रत ‘देवशयनी एकादशी’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ और इसे करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं तथा जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

व्रत टूट जाए तो क्या करें?

यदि भूलवश व्रत टूट जाए, तो भगवान विष्णु से क्षमा याचना करें और ब्राह्मण या गरीब को अन्न, वस्त्र या धन का दान करें। शेष दिन संयमपूर्वक बिताएं और व्रत कथा का श्रवण करें।

ज्योतिषीय संकेत

6 जुलाई 2025 को गुरु और सूर्य का विशेष गोचर होने जा रहा है, जिससे धार्मिक कार्यों की स्थिति में परिवर्तन संभव है। शुक्र के अस्त होने से शुभ कार्यों पर रोक और वर्षा चक्र पर प्रभाव देखा जा सकता है।

निष्कर्ष

देवशयनी एकादशी केवल व्रत नहीं, आत्मिक जागृति का एक अद्भुत अवसर है। यह काल व्यक्ति को जीवन की भौतिक उलझनों से अलग कर, भक्ति, ध्यान और सेवा की ओर उन्मुख करता है। जो साधक इस काल में नियमपूर्वक व्रत, संयम और सेवा करता है, उसे प्रभु विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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