सप्तश्लोकी दुर्गा – संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का सार | सात दिव्य श्लोक, अर्थ और लाभ
दुर्गा सप्तशती का सार
हिन्दू सनातन परंपरा में, श्री दुर्गा सप्तशती एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शक्तिशाली ग्रंथ के रूप में प्रतिष्ठित है। यह केवल एक स्तोत्र संग्रह नहीं, अपितु माँ भगवती की कृपा प्राप्त करने का एक गूढ़ साधना-विधान है। यद्यपि, इसके संपूर्ण पाठ के कठोर नियम हैं जिनका पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए, विशेषकर आज के व्यस्त जीवन में, संभव नहीं हो पाता। तथापि, शास्त्रों में इसका एक संक्षिप्त और उतना ही प्रभावकारी सार भी वर्णित है, जो सात विशिष्ट श्लोकों में समाहित है।
इस संक्षिप्त सार का उद्भव स्वयं भगवान शिव और देवी पार्वती के मध्य हुए एक दिव्य संवाद से हुआ है। कलियुग में भक्तों के कल्याण की चिंता करते हुए भगवान शिव ने देवी से पूछा, “हे देवि! तुम भक्तों के लिए सुलभ हो और समस्त कर्मों का विधान करने वाली हो। कलियुग में कामनाओं की सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा सम्यक् रूप से व्यक्त करो।” इस पर देवी ने उत्तर दिया, “हे देव! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है। कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाला जो साधन है वह बतलाऊँगी, सुनो! उसका नाम है ‘अम्बास्तुति’।” यही अम्बास्तुति ‘सप्तश्लोकी दुर्गा’ के नाम से विख्यात हुई, जिसमें संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का सार निहित है।
यह मार्गदर्शिका इन्हीं सात दिव्य श्लोकों की प्रामाणिक और सुलभ समझ प्रदान करने के उद्देश्य से तैयार की गई है। इसमें प्रत्येक मंत्र का अर्थ और उसके विशिष्ट अनुप्रयोगों का वर्णन है, ताकि साधक आज के व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए उनका प्रयोग कर सकें।
सप्तश्लोकी दुर्गा: मंत्र, अर्थ और लाभ
ये सात श्लोक केवल छंद नहीं, अपितु शक्ति के सात जीवंत केंद्र हैं। प्रत्येक श्लोक एक विशिष्ट दैवीय स्पंदन से ओत-प्रोत है और ब्रह्मांड की भिन्न-भिन्न शक्तियों का आह्वान करता है। यह खंड प्रत्येक श्लोक को उसके मूल संस्कृत स्वरूप, स्पष्ट हिंदी अनुवाद और जीवन की विभिन्न बाधाओं को दूर करने में उसके लाभों के विस्तृत विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करता है।
प्रथम श्लोक: मोह पर विजय और बुद्धि का शुद्धिकरण
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
अर्थ: वे भगवती महामाया देवी, ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं।
अर्थ: माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है?
अर्थ: नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।
अर्थ: सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपिणी दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है।
शत्रु भय से मुक्ति हेतु
तंत्र-मंत्र आदि से रक्षा हेतु
न्यायालयीन संकटों में विजय हेतु
षष्ठ श्लोक: रोग-नाश और आश्रय-प्राप्ति
रोगानशेषानपंहसि तुष्टारुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हि आश्रयतां प्रयान्ति॥
अर्थ: देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं।
अर्थ: सर्वेश्वरी! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
अज्ञात बाधा-निवारण हेतु
सर्व-बाधा-शांति हेतु
आंतरिक एवं बाह्य शत्रुओं के विनाश हेतु
यह सात श्लोक, अपने आप में पूर्ण होते हुए भी, जब एक साथ आते हैं तो एक अभेद्य आध्यात्मिक कवच का निर्माण करते हैं। जहाँ प्रत्येक श्लोक एक विशिष्ट अस्त्र है, वहीं संपूर्ण सप्तश्लोकी का पाठ जीवन के हर क्षेत्र में समग्र उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
सप्तश्लोकी पाठ के समग्र लाभ
कष्टों का निवारण और साहस में वृद्धि: साधक के भीतर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता: आत्मबल दृढ़ होकर चुनौतियों को अवसर में बदल देता है।
महिलाओं के लिए विशेष लाभ: सौंदर्य, तेज और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
जीवन में सफलता: उन्नति और समाज में उच्च पद की प्राप्ति होती है।
सुख और प्रतिष्ठा की प्राप्ति: वैवाहिक जीवन में सुख और समाज में मान-सम्मान मिलता है।
अंतिम विचार
सप्तश्लोकी दुर्गा कलियुग के साधकों के लिए माँ भगवती का एक अमूल्य दिव्य उपहार है। यह उन लोगों के लिए एक सुगम मार्ग प्रशस्त करता है जो समय की कमी या नियमों की जटिलता के कारण संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ करने में असमर्थ हैं। इन मंत्रों की वास्तविक शक्ति श्रद्धा, भक्ति और नियमित अभ्यास से ही प्रकट होती है। जब एक साधक पूर्ण विश्वास के साथ इन श्लोकों का आश्रय लेता है, तो माँ दुर्गा स्वयं उसके सभी कष्टों को हर लेती हैं और उसे अभय का वरदान देती हैं।