पौष पुत्रदा एकादशी हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक मानी जाती है। यह व्रत विशेष रूप से संतान सुख, संतान की रक्षा और परिवार की निरंतरता से जुड़ा हुआ माना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत और पूजन करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पौष पुत्रदा एकादशी क्या है
पौष पुत्रदा एकादशी पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसे “पुत्रदा” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह संतान प्राप्ति और संतान के कल्याण से जुड़ी मानी जाती है।
शास्त्रों के अनुसार, यह एकादशी उन दंपत्तियों के लिए विशेष फलदायी मानी गई है जो संतान की कामना रखते हैं या अपनी संतान के सुख, स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्रार्थना करते हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी कब आती है
पौष पुत्रदा एकादशी हर वर्ष पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। यह तिथि आमतौर पर दिसंबर या जनवरी के महीने में पड़ती है।
चूँकि एकादशी तिथि पंचांग के अनुसार बदलती रहती है, इसलिए इसका सही दिन हर वर्ष अलग हो सकता है। व्रत करने से पहले स्थानीय पंचांग या विद्वान से तिथि की पुष्टि करना उचित माना जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी 2025 – तिथि और व्रत समय
| एकादशी तिथि प्रारंभ | 30 दिसंबर 2025, सुबह 07:50 बजे |
|---|---|
| एकादशी तिथि समाप्त | 31 दिसंबर 2025, सुबह 05:00 बजे |
| व्रत रखने का दिन | 30 दिसंबर 2025 |
| पारण (व्रत खोलने) का दिन | 31 दिसंबर 2025 |
| पारण का शुभ समय | दोपहर 01:29 बजे से 03:33 बजे तक |
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व केवल संतान प्राप्ति तक सीमित नहीं है। यह व्रत व्यक्ति के जीवन में धर्म, संयम और भक्ति को मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करता है।
मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से पिछले जन्मों के दोष और पाप कर्मों का शमन होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस एकादशी पर सच्चे मन से भगवान विष्णु की आराधना करता है, उसकी संतान की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं।

पौष पुत्रदा एकादशी क्यों की जाती है
यह एकादशी मुख्य रूप से संतान संबंधी चिंताओं, वंश वृद्धि और पारिवारिक स्थिरता के लिए की जाती है। कई लोग इसे संतान प्राप्ति की कामना से रखते हैं, जबकि कुछ अपनी संतान के अच्छे भविष्य और संस्कारों के लिए इस व्रत को करते हैं।
इसके अलावा, यह व्रत आत्मसंयम, उपवास और ईश्वर के प्रति समर्पण का अभ्यास भी माना जाता है, जिससे मन और विचारों में शुद्धता आती है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की सरल विधि
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।
व्रती दिनभर उपवास रखता है या फलाहार करता है। पूजा में तुलसी पत्र, दीपक, धूप और नैवेद्य अर्पित किया जाता है। रात में भगवान विष्णु के नाम का स्मरण या कथा श्रवण करना शुभ माना जाता है।
अगले दिन द्वादशी तिथि को व्रत का पारण किया जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत से मिलने वाले लाभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति को कई प्रकार के मानसिक और पारिवारिक लाभ प्राप्त होते हैं।
इससे घर में सकारात्मक वातावरण बनता है, संतान से जुड़े कष्ट कम होते हैं और माता-पिता व संतान के बीच संबंध मजबूत होते हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी से जुड़ी मान्यताएँ
पुराणों में वर्णन मिलता है कि इस एकादशी का व्रत करने से न केवल संतान सुख मिलता है, बल्कि व्यक्ति को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
यही कारण है कि वैष्णव परंपरा में पौष पुत्रदा एकादशी को विशेष श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी की कथा
प्राचीन समय की बात है। भद्रावती नामक नगरी में सुकृतु नाम के एक धर्मपरायण राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम शैव्या था। राजा और रानी दोनों ही सद्गुणी, दयालु और भगवान विष्णु के भक्त थे, लेकिन उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं था।
संतान न होने के कारण राजा और रानी दोनों ही अत्यंत दुखी रहते थे। वे अपने वंश के भविष्य को लेकर चिंतित रहते और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करते रहते थे। समय बीतता गया, लेकिन उनकी चिंता कम नहीं हुई।
एक दिन राजा सुकृतु गहरे विचारों में डूबे हुए वन की ओर चले गए। वहाँ उन्होंने कुछ ऋषियों को तपस्या करते देखा। राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी व्यथा सुनाई।
ऋषियों ने राजा की बात सुनकर कहा कि यह सब पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। उन्होंने राजा को उपाय बताते हुए कहा कि यदि वे पौष मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करें और भगवान विष्णु की आराधना करें, तो उन्हें अवश्य संतान सुख की प्राप्ति होगी।
ऋषियों की आज्ञा पाकर राजा सुकृतु ने नगर लौटकर रानी शैव्या के साथ पौष पुत्रदा एकादशी का श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत किया। उन्होंने पूरे दिन उपवास रखा, भगवान विष्णु का पूजन किया और रात्रि में जागरण भी किया।
भगवान विष्णु उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। कुछ समय पश्चात राजा और रानी को एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। उस दिन से पौष पुत्रदा एकादशी को संतान सुख प्रदान करने वाली एकादशी माना जाने लगा।
कहा जाता है कि तभी से जो भी भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करता है, उसकी संतान से जुड़ी चिंताएँ दूर होती हैं और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
ऐसी कथाओं का उद्देश्य केवल सुनना नहीं होता, बल्कि उनमें दिए गए संदेश को समझना होता है। ये कथाएँ उदाहरण और दृष्टांत के रूप में हमें यह सिखाती हैं कि भगवान के प्रति विश्वास, संयम और भक्ति भाव के साथ व्रत और आचरण किया जाए। जब इन्हीं भावनाओं के साथ पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है, तब उसका वास्तविक फल प्राप्त होता है।
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